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-अफ़रोज़ आलम साहिल

भारत में इस समय समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड की बहस चल रही है. कुछ संगठन इसकी प्रखर विरोध भी कर रहे हैं और कुछ इसकी मांग भी कर रहे हैं. इस राष्ट्रीय स्तर की बहस से इतर एक और बहस है, जिस पर हम लोगों को ज़रूर सोचना चाहिए. यह बहस मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में सुधार और बदलाव को लेकर है.

ये बहस या कहें कि मांग उठाई है महिलाओं और युवाओं ने, जिन्हें लगता है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में फिल-वक़्त 80 फीसदी से उपर सदस्य 70 साल से अधिक उम्र के हैं. ऐसे में युवाओं की आवाज़ इस बोर्ड में न के बराबर ही है. इसीलिए मुसलमानों की इस सर्वोच्च संस्था के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों से युवाओं की भागीदारी की आवाज़ बुलंद होने लगी है. इन हालातों में बोर्ड के लिए बदलाव के इस बयार को लंबे वक़्त तक नज़रअंदाज़ कर सकना मुमकिन नहीं दिखता.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ खुद एक्जक्यूटिव सदस्य हाफिज़ अतहर अली यह सवाल उठा चुके हैं कि बोर्ड में युवाओं के लिए जगह क्यों नहीं?

खुद उनका कहना है कि –कम उम्र के तलबा को सदस्य बनाने से कई फायदे होंगे. वह तजुर्बेकारों के बीच रहकर शरई कानूनों मसलों को अच्छी तरह से समझेगा और बोर्ड के फैसलों पर अमल-दरामत में भी तेज़ी लाएगा.

यह बयान उन्होंने 2015 के मई महीने में दिया था, लेकिन अब TwoCircles.net से बात करते हुए उनका कहना है कि –जबसे मौलाना वली रहमानी बोर्ड के एक्टिंग जेनरल सेकेट्री बने हैं, बोर्ड में युवाओं की भागीदारी बढ़ी है.

क्या बोर्ड ने इन दिनों युवाओं को सदस्य बनाया है? कितने युवा हैं बोर्ड में? इन सवालों के जवाब में उनका कहना है कि –‘मेरे पास कोई लिस्ट नहीं है. लेकिन वली रहमानी बढ़िया काम कर रहे हैं.’

कुछ महीने पूर्व लखनउ के एक अधिवेशन में भी बोर्ड में युवाओं की भागीदारी को लेकर सवाल उठ चुका है. यह मांग अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लॉ के प्रोफेसर व बोर्ड के सदस्य शकील समदानी ने रखी थी.

TwoCircles.net से विशेष बातचीत में शकील समदानी बताते हैं कि –कई सदस्यों ने कहा था बोर्ड में युवाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए. लेकिन मेरा मानना है कि सिर्फ़ युवा होना काफी नहीं है, बल्कि मिल्ली कामों का तजुर्बा व जज़्बा हो. ये संजीदा इदारा है. यहां जज़्बाती नारों से काम नहीं चलेगा. उन्हें पता होना चाहिए कि इस्लाम क्या है. शरीअत क्या है.

वहीं बोर्ड के सदस्य कमाल फारूक़ी का कहना है कि –हमारे यहां युवाओं व महिलाओं के रिप्रेजेन्टेशन की अलग से कोई बात नहीं होती है. जो काम करने वाले होते हैं उन्हें बोर्ड में शामिल किया जाता है......Read more

-अफ़रोज़ आलम साहिल देश के जाने माने लेखक/पत्रकार है |
साभारः www.twocircles.net

Writer:zninews(2017-02-06)
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